MIRZA GALIB      SHAYARI

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब, कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे ।

आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद, मुझसे मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न माँग।

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ता फिर न इंतज़ार में नींद आये उम्र भर, आने का अहद कर गये आये जो ख्वाब में।