Ketan Jain story ईश्वर – एक भरोसा
ईश्वर – एक भरोसा
““एक बालक लगभग ९ साल का था, जिसका नाम था ‘ऋषभ’। वह अपनी माँ के साथ एक छोटे से शहर में किसी छोर पर बने एक छोटे से घर में रहता था। ऋषभ के पिता की कुछ साल पहले एक बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी, इसी वजह से उसकी माँ को घर चलाने के लिए दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था और उसी आमदनी से दोनों का गुजारा हो जाता था।
ऋषभ की माँ ने बचपन से ही ऋषभ को ईश्वर की भक्ति करना और नेक दिल इंसान बनने के पाठ सिखाए थे, इसलिए वह हंमेशा ही सबसे अच्छा व्यवहार करता था। जैसे-जैसे ऋषभ बड़ा हुआ, वह पढ़ाई में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने लगा। लेकिन, दूसरे लड़के हमेशा ऋषभ की तारीफों से जलते थे और वे हमेशा ऋषभ को चिढ़ाते थे।
बचपन से ही ऋषभ के मन में ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा थी और उसका एक ही बात में विश्वास था कि सच्चे मन से चाहने पर ईश्वर किसी भी स्वरूप में मिल सकते हैं। ऋषभ और उसकी कक्षा में पढ़ने वाले एक लड़के मिलिंद के बीच इस विषय पर थोड़ी अनबन हो जाती थी।
एक दिन मिलिंद और उसके दोस्त, एक लड़के को परेशान कर रहे थे। तभी ऋषभ उनके बिच आ पंहुचा।
“कृपया, इस बच्चे को परेशान मत करो। अगर तुम इस बच्चे के साथ ऐसा करोगे तो भगवान तुम्हें इसकी सजा देगा।” ऋषभ तुरंत ही मिलिंद और उसके दोस्तों को रोकता है।
ईश्वर – एक भरोसा
“लेकिन, मैं तुम्हें यह कैसे साबित कर सकता हूं? वह ईश्वर है; वह जब चाहे प्रकट हो सकते है।” ऋषभ निराश होते हुए कहता है।
“ठीक है फिर, कल दोपहर स्कूल के बाद, तुम मेरे साथ आना। मैं तुम्हारे इस ईश्वर के प्रति विश्वास का परीक्षण करूंगा और देखूंगा कि तुम्हारा ईश्वर वास्तव में मौजूद है भी या नहीं।” मिलिंद ने कहा। लेकिन, उसके दिमाग में कुछ बुरी योजना जन्म लेती है।
“कोई बात नहीं। मैं कल दोपहर तुम्हारे साथ चलूंगा। मुझे ईश्वर पर पूरा भरोसा है।” ऋषभ आत्मविश्वास के साथ बोलता है।
मिलिंद और उसके दोस्त वहां से चले जाते हैं। ऋषभ भी अपने घर चला जाता है और अपनी मां को सारी बात बताता है। पहले तो यह सब सुनकर उसकी मां भी उसे वहां जाने से मना कर देती है। लेकिन, ऋषभ अपने आत्मविश्वास से अपनी माँ को समझाने में कामयाब हो जाता है। जिसने खुद ऋषभ को बचपन से भगवान के प्रति श्रद्धा रखना सिखाया है, वह कैसे खुद अपनी उन बातों को नकार सकती है। इसलिए, वह ऋषभ को जाने की अनुमति दे देती है।
ईश्वर – एक भरोसा
अगले दिन ऋषभ सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर तैयार हो जाता है और फिर घर के कोने में बने एक छोटे से मंदिर में रखी, भगवान की मूर्ति के सामने खड़े होते हुए हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगता है। फिर वहां से सीधे स्कूल चला जाता है और पढ़ाई में अपना ध्यान लगाता है। स्कूल में हर कोई ऋषभ और मिलिंद की चुनौती के बारे में बात कर रहे होते है। लेकिन, मिलिंद ने ऋषभ की चुनौती के लिए क्या योजना बनाई है, यह कोई नहीं जानता।
दोपहर में, जैसे ही स्कूल का समय समाप्त होता है, मिलिंद और ऋषभ दोनों एकसाथ निकल जाते हैं। चलते-चलते वह दोनों गांव के बाहर, तालाब के पास बने रास्ते से गुजरते हुए, आगे घने जंगल में पहुंच जाते हैं। जंगल में एक छोटी सी झोपड़ी बनी हुई होती है, जहां कोई भी आता जाता नहीं है। वहां पहुंचकर मिलिंद ऋषभ को उस झोंपड़ी के अंदर भेजता है और झोपड़ी को बाहर से बंध कर देता हैं।
“सुनो, ऋषभ। मैं तुम्हें अभी के लिए यहाँ छोड़ कर जा रहा हूँ और मैं तुम्हें लेने के लिए कल दोपहर फिर यहाँ आऊँगा। यदि तुम्हारा ईश्वर वास्तविक है, तो वह तुम्हें छुड़वाने के लिए यहाँ जरूर आएँगे और तुम्हें बचाने के लिए यह द्वार खोलेंगे। अगर, वो नहीं आए, तो फिर तुम कभी ईश्वर का नाम नहीं लोगे।” इतना कहकर मिलिंद वहां से चला जाता है और ऋषभ बिना
कुछ बोले चुपचाप वहीं बैठ कर भगवान से प्रार्थना करने लगता है।
ऋषभ सारा दिन उस झोंपड़ी के अंदर बैठकर भगवान से प्रार्थना करता रहता है। धीरे-धीरे दिन ढल जाता है और रात होने के साथ ही झोपड़ी के अंदर अँधेरे के साथ साथ कोहरा फैलने लगता है। झोंपड़ी के अंदर का तापमान भी धीरे-धीरे गिरने लगता है, ठंड के कारण ऋषभ का शरीर भी कांपने लगता है। लेकिन, फिर भी ऋषभ का आत्मविश्वास बेहद शांत और स्थिर होकर ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहता है।
रात के करीब ९ बजे अचानक उस कुटिया के बाहर किसी के कदमों की आहट सुनाई देती है। रात के सन्नाटे में जंगल से झोपड़ी की ओर बढ़ते हुए कदमों की आहाट तेज होने लगती है, ऐसा लगता है जैसे धीरे-धीरे कदम झोपड़ी के पास आ रहे हों। अचानक से वे कदम कुटिया के द्वार पर रुक जाते हैं और द्वार खुलने की आवाज सुनाई देती है। उस आवाज को सुनकर ऋषभ भी अपनी आंखें खोलता है।
झोपड़ी का दरवाजा खुलता है और एक बूढ़ा झोपड़ी में प्रवेश करता है। एक बूढ़े आदमी के प्रवेश करते ही पूरा कमरा रोशन हो जाता है। उस बूढ़े आदमी के पीछे से आती हुई रोशनी से पूरा कमरा जगमगा उठता है। ऐसा लगता है कि वह बूढ़ा आदमी झोंपड़ी में रोशनी ले आया हो। ऋषभ उसे देखकर दंग रह जाता है और तुरंत अपने दोनों हाथ जोड़ लेता है।
ईश्वर – एक भरोसा
वह बूढ़ा आदमी अंदर आता है और उस बालक को देखकर उसके सामने हाथ जोड़ते हुए उसके पास बैठ जाता है। उसके बाद तुरंत ही अपने साथ लाए कपड़े के थैले में से एक कागज में लिपटे हुए परांठे निकालते हैं और अपने हाथों से उसे खिलाते हैं। चेहरे पर मुस्कान लिए ऋषभ उन पराठों को खाता है। परांठे खत्म होते ही दोनों उठ खड़े होते हैं और उस झोंपड़ी से बाहर निकल आते हैं। चेहरे पर एक उज्ज्वल मुस्कान के साथ दोनों अपने-अपने रास्ते पर आगे बढ़ने लगते हैं।
ऋषभ घर पहुंचता है और अपनी मां को सारी बात बताने लगता है। यह सुनने के बाद ऋषभ की मां अपने बेटे के माथे को चुम लेती है और दोनों चैन की नींद सो जाते हैं।””
लेकिन इस कहानी का दूसरा हिस्सा सबसे बेहतरीन और मेरा खास पसंदिता रहा है।
“”चलते-चलते वह बूढ़ा जंगल के दूसरी तरफ स्थित गाँव में बने एक घर के पास पहुँचता है। वह बूढ़ा घर के अंदर जाकर, खाट पर लेटी एक बुढ़िया के पास जाकर बैठ जाता है।
“सुनो, तुम ठीक कह रही थी। मुझे जंगल के बीच में एक झोपड़ी मिली और उस झोपड़ी में; मैंने एक भगवान को देखा, जो एक बच्चे के रूप में ध्यान कर रहे थे। उनका पूरा शरीर रोशनी से चमक रहा था, जैसे कि चंद्रमा का सारा प्रकाश उनमें विलीन हो गया हो। मैं जाकर उनके पास बैठ गया और वह भी मुझे देखकर मुस्कुराने लगे, मानो वह मेरा ही इंतजार कर रहे हो। फिर बाद में मैंने अपना बैग खोला और उसमें से तुम्हारे हाथों से बने परांठे निकाले। फिर मैंने उन्हें अपने हाथों से उन्हें खिलाना शुरू किया और उन्होंने भी उन पराठों को बड़े चाव से खाया।” इतना कहकर बूढ़े ने बड़े उत्साह से बुढ़िया को गले लगा लिया और रोने लगा।””
तो, इस पूरी कहानी का मर्म सिर्फ इतना है कि, “इस दुनिया में हर इंसान के भीतर भगवान बसते हैं, कुछ लोग इस पर विश्वास करते हैं और कुछ लोग कभी नहीं कर पाते। लेकिन, एक बात तो तय है कि इस दुनिया में इंसानियत का होना ही ईश्वर का असली सबूत है। अगर हर इंसान मानवता के साथ दूसरों के लिए निःस्वार्थ अच्छा काम करने लगे, तो वह दिन दूर नहीं; जब हर कोई इस बात पर भरोसा करने लगेगा कि हर इंसान में भगवान का वास है।