SHAYARI URDU ADA JAFRI
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एक पाकिस्तानी लेखिका और कवयित्री थीं,अदा जाफ़री (Ada Jafri )। यह पहली उर्दू में कविता लिखने वाली महिला बनी। इनकी कहानी के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। कवयित्री होने के साथ-साथ वे एक लेखिका भी थी और समकालीन उर्दू साहित्य मे उनका विशिष्ठ स्थान है।
उनके योगदान के लिय पाकिस्तान राईटर्स गिल्ड, पाकिस्तान सरकार , उत्तरी अमेरिका और यूरोप के साहित्यिक समाजों ने उन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित किया था।
इनका जन्म उत्तर प्रदेश, भारत में 22 अगस्त 1924 में हुआ था। इनका बचपन का नाम अज़ीज़ जहान था। वे केवल तीन वर्ष की थी जब उन्के पिता, मौलवी बदरूल हसन की मृत्यु हो गयी थी। और उनकी माँ ने उनका का पालन-पोषण किया। यह 12 वर्ष की उम्र में ही कविता लिखने लगीं। लखनऊ में 29 जनवरी 1947 मे उनकी शादी नुरून हसन जाफरी से हुई । शादी के बाद वह अपने पति के साथ लखनऊ से कराची चली गई । जहाँ नुरून अँग्रेजी और उर्दू समाचार पत्र में एक लेखक बन गए । 3 दिसम्बर, 1995 को नुरून की मौत हो गई । इसके बाद वह कराची से टोरोंटो में चले जाती हैं। जहाँ वह उर्दू का प्रचार करती हैं।
Ada Jafri shayari urdu | bio of Ada Jafri
परिवार
अदा जाफरी और नुरुल जाफ्रि के सबीहा, आजमी और आमिर नाम के तीन बच्चे थे। सबीहा जाफरी ने जुबैर इकबाल से शादी की है और वे पोटोमेक, मेरीलैंड, अमेरिका में बसे है। उन्के, सबा इकबाल, यूसुफ इकबाल और समीर इकबाल नाम के तीन बच्चे हैं। आजमी जाफरी और उनकी पत्नी शूआ जाफ्रि अब एंडोवर, मासेचुसेट्स, अमेरिका में बसे हुए हैं। उनके दो बेटे, फाइज़ और आज़िम हैं। अदा जाफरी अपने बेटे आमिर जाफ्रि और उनकी पत्नी माहा जाफरी के साथ करची मे रहा करती थी। उनकी एक बेटी थी, असरा जाफ्रि।
बाद का जीवन
अदा जाफरी कराची मे रहा करती थी।उन्होंने उर्दू भाषा को बढ़ावा देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई थी और इसके लिये,वे अकसर कराची और टोरंटो के बीच लगातार यात्रा करती थी।
मृत्यु
उनके आखरी समय मे अदा जाफरी का इलाज कराची मे हो रहा था। १२ मार्च २०१५ की शाम को उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय वे ९० वर्ष की थी। जाफरी की मौत पर पाकिस्तानी सूचना मंत्री प्रसार तथा राष्ट्रीय विरासत, परवेज राशिद, सिंध के राज्यपाल डॉ इश्रातुल एबाद खान, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ, डॉ मुहम्मद कासिम बुघयो, अध्यक्ष पाल, और ज़ाहिदा परवीन, महानिदेशक पाल, ने दु: ख व्यक्त किया। उन सब ने उर्दु भाषा के प्रति जाफ्रि के योगदान को सराहा। उसके अंतिम संस्कार प्रार्थना अल-हिलाल मस्जिद, कराची में आयोजित किया गया था। उन्हें पि।ई।सि।एच।एस कब्रिस्तान, जमशेद टाउन, कराची, में दफनाया गया था।
शैली
अदा जाफरी की कार्यों की सूची मै ज्यादातर गज़ल है हालांकि उन्होंनें आजाद नज़्म और उर्दू हाइक का भी प्रयोग किया है। उर्दू शायरी की दो शैलियाँ है- नज़्म और ग़ज़ल और उन्होंनें दोनों में महारत हासिल किया था। अपने गज़लों में उन्होंनें उपनाम ‘अदा’ का प्रयोग किया। कविताओं और गज़ल आदि के अलावा उन्होंनें कुछ मज़ामीन भी लिखे हैं।
मैं साज ढूंढ़ती रही, गजालां तुम तो वाकिफ हो…इनकी मुख्य कृतियां हैं।
famous gazal
अचानक दिल-रुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना
दुआ आसाँ नहीं रहना सुख़न दुश्वार हो जाना
तुम्हें देखें निगाहें और तुम को ही नहीं देखें
मोहब्बत के सभी रिश्तों का यूँ नादार हो जाना
अभी तो बे-नियाज़ी में तख़ातुब की सी ख़ुश-बू थी
हमें अच्छा लगा था दर्द का दिल-दार हो जाना
अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
हमें आता है पत-झड़ के दिनों गुल-बार हो जाना
अभी कुछ अन-कहे अल्फ़ाज़ भी हैं कुँज-ए-मिज़गाँ में
अगर तुम इस तरफ़ आओ सबा रफ़्तार हो जाना
हवा तो हम-सफ़र ठहरी समझ में किस तरह आए
हवाओं का हमारी राह में दीवार हो जाना
अभी तो सिलसिला अपना ज़मीं से आसमाँ तक था
अभी देखा था रातों का सहर आसार हो जाना
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना.
दीप था या तारा क्या जाने
दिल में क्यूँ डूबा क्या जाने
गुल पर क्या कुछ बीत गई है
अलबेला झोंका क्या जाने
आस की मैली चादर ओढ़े
वो भी था मुझ सा क्या जाने
रीत भी अपनी रुत भी अपनी
दिल रस्म-ए-दुनिया क्या जाने
उँगली थाम के चलने वाला
नगरी का रस्ता क्या जाने
कितने मोड़ अभी बाक़ी हैं
तुम जानो साया क्या जाने
कौन खिलौना टूट गया है
बालक बे-परवा क्या जाने
ममता ओट दहकते सूरज
आँखों का तारा क्या जाने
ada jafri gazal
न ग़ुबार में न गुलाब में मुझे देखना
मेरे दर्द की आब-ओ-तब में मुझे देखना
किसी वक़्त शाम मलाल में मुझे सोचना
कभी अपने दिल की किताब में मुझे देखना
किसी धुन में तुम भी जो बस्तियों को त्याग दो
इसी रह-ए-ख़ानाख़राब में मुझे देखना
किसी रात माह-ओ-नजूम से मुझे पूछना
कभी अपनी चश्म पुरआब में मुझे देखना
इसी दिल से हो कर गुज़र गये कई कारवाँ
की हिज्रतों के ज़ाब में मुझे देखना
मैं न मिल सकूँ भी तो क्या हुआ के फ़साना हूँ
नई दास्ताँ नये बाब में मुझे देखना
मेरे ख़ार ख़ार सवाल में मुझे ढूँढना
मेरे गीत में मेरे ख़्वाब में मुझे देखना
मेरे आँसुओं ने बुझाई थी मेरी तश्नगी
इसी बरगज़ीदा सहाब में मुझे देखना
वही इक लम्हा दीद था के रुका रहा
मेरे रोज़-ओ-शब के हिसाब में मुझे देखना
जो तड़प तुझे किसी आईने में न मिल सके
तो फिर आईने के जवाब में मुझे देखना
ADA JAFRI gazal URDU
काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या
पलकों के बीच सारे उजाले सिमट गए
साया न साथ दे ये वही मरहला है क्या
मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ
तुम मुझ से पूछते हो मेरा हौसला है क्या
साग़र हूँ और मौज के हर दाएरे में हूँ
साहिल पे कोई नक़्श-ए-क़दम खो गया है क्या
सौ सौ तरह लिखा तो सही हर्फ़-ए-आरज़ू
इक हर्फ़-ए-आरज़ू ही मेरी इंतिहा है क्या
इक ख़्वाब-ए-दिल-पज़ीर घनी छाँव की तरह
ये भी नहीं तो फिर मेरी ज़ंजीर-ए-पा है क्या
क्या फिर किसी ने क़र्ज़-ए-मुरव्वत अदा किया
क्यूँ आँख बे-सवाल है दिल फिर दुखा है क्या
ADA JAFRI SHAYARI URDU
आख़िरी टीस आज़माने को
जी तो चाहा था मुस्कुराने को
याद इतनी भी सख़्तजाँ तो नहीं
इक घरौंदा रहा है ढहाने को
संगरेज़ों में ढल गये आँसू
लोग हँसते रहे दिखाने को
ज़ख़्म-ए-नग़्मा भी लौ तो देता है
इक दिया रह गया जलाने को
जलने वाले तो जल बुझे आख़िर
कौन देता ख़बर ज़माने को
कितने मजबूर हो गये होंगे
अनकही बात मुँह पे लाने को
खुल के हँसना तो सब को आता है
लोग तरसते रहे इक बहाने को
रेज़ा रेज़ा बिखर गया इन्साँ
दिल की वीरानियाँ जताने को
हसरतों की पनाहगाहों में
क्या ठिकाने हैं सर छुपाने को
हाथ काँटों से कर लिये ज़ख़्मी
फूल बालों में इक सजाने को
आस की बात हो कि साँस ‘अदा’
ये ख़िलौने हैं टूट जाने को
two liner
ADA JAFRI SHAYARI URDU
ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई
इब्तिदा रंज की कहाँ से हुई
अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
हमें आता है पतझड़ के दिनों गुल-बार हो जाना
आ देख कि मेरे आँसुओं में
ये किस का जमाल आ गया है
ADA JAFRI 2 LINE POETRY
कोई ताइर इधर नहीं आता
कैसी तक़्सीर इस मकाँ से हुई
काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या
कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला
सूरज मिरी निगाह की सच्चाइयों में था
ADA JAFRI BEST POETRY IMAGES
वर्ना इंसान मर गया होता
कोई बे-नाम जुस्तुजू है अभी
तू ने मिज़्गाँ उठा के देखा भी
शहर ख़ाली न था मकीनों से
अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा
अभी तो याद भी बे-साख़्ता नहीं आई
2 Line Poetry Sher & Ghazal
ADA JAFRI GHAZAL IN URDU
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
वो दास्ताँ उलझ गई वज़ाहतों के दरमियाँ
बोलते हैं दिलों के सन्नाटे
शोर सा ये जो चार-सू है अभी
मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ
तुम मुझ से पूछते हो मिरा हौसला है क्या
न बहलावा न समझौता जुदाई सी जुदाई है
‘अदा’ सोचो तो ख़ुशबू का सफ़र आसाँ नहीं होता
TWO LINE SHAYARI BY ADA JAFRI
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
आए तो सही बर-सर-ए-इल्ज़ाम ही आए
बस एक बार मनाया था जश्न-ए-महरूमी
फिर उस के बाद कोई इब्तिला नहीं आई
Ada Jafri Shayari in HIndi
SHAYARI OF ADA JAFRI
दिल के वीराने में घूमे तो भटक जाओगे
रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार से आगे न बढ़ो
एक आईना रू-ब-रू है अभी
उस की ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू है अभी
गुल पर क्या कुछ बीत गई है
अलबेला झोंका क्या जाने
अदा जाफ़री शेर इन हिंदी
बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता
जिस की बातों के फ़साने लिक्खे
उस ने तो कुछ न कहा था शायद
जिस की जानिब ‘अदा’ नज़र न उठी
हाल उस का भी मेरे हाल सा था
‘सहर’ अब होगा मेरा ज़िक्र भी रौशन-दिमाग़ों में
मोहब्बत नाम की इक रस्म-ए-बेजा छोड़ दी मैं ने
हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
सीने से लिपटो या गला काटो
हम तुम्हारे हैं दिल तुम्हारा है
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह
सुबूत-ए-इश्क़ की ये भी तो एक सूरत है
कि जिस से प्यार करें उस पे तोहमतें भी धरें
इश्क मोहब्बत की शायरी
वो चेहरा किताबी रहा सामने
बड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई
वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था
बिछड़ गया तो ब-ज़ाहिर कोई मलाल नहीं
हो गया जिस दिन से अपने दिल पर उस को इख़्तियार
इख़्तियार अपना गया बे-इख़्तियारी रह गई
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
सुख़न के चाक में पिन्हाँ तुम्हारी चाहत है
वगरना कूज़ा-गरी की किसे ज़रूरत है
सच कहते हैं कि नाम मोहब्बत का है बड़ा
उल्फ़त जता के दोस्त को दुश्मन बना लिया
सीने में बे-क़रार हैं मुर्दा मोहब्बतें
मुमकिन है ये चराग़ कभी ख़ुद ही जल पड़े
PYAR MOHABBAT BHARI SHAYARI
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे
हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे
हमारे साथ मोहब्बत उन्हें नहीं तो नहीं
होती नहीं है यूँही अदा ये नमाज़-ए-इश्क़
याँ शर्त है कि अपने लहू से वज़ू करो
हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम
मगर हम तो तमाशा हो गए हैं
वो सितम न ढाए तो क्या करे उसे क्या ख़बर कि वफ़ा है क्या?
तू उसी को प्यार करे है क्यूँ ये ‘कलीम’ तुझ को हुआ है क्या?
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो
ये भी इक बे-ख़बरी है कि ख़बर रखते हैं
सितम-नवाज़ी-ए-पैहम है इश्क़ की फ़ितरत
फ़ुज़ूल हुस्न पे तोहमत लगाई जाती है
सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
ये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा
सब्र बिन और कुछ न लो हमराह
कूचा-ए-इश्क़ तंग है यारो
सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते
सुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए
इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
वो तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
MOHABBAT BHARI SHAYARI WITH IMAGES
हुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क़ का इंतिक़ाम होता है
हम ने अव्वल से पढ़ी है ये किताब आख़िर तक
हम से पूछे कोई होती है मोहब्बत कैसी
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
सुना रहा हूँ उन्हें झूट-मूट इक क़िस्सा
कि एक शख़्स मोहब्बत में कामयाब रहा
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
शायद इसी का नाम मोहब्बत है ‘शेफ़्ता’
इक आग सी है सीने के अंदर लगी हुई
Mohabbat Bhari Shayari Hindi Me
शम-ए-शब-ताब एक रात जली
जलने वाले तमाम उम्र जले
हम हैं उन से वो ग़ैर से मायूस
क्या मोहब्बत किसी को रास नहीं
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
क्यूँ तुम आसान समझते थे मोहब्बत मेरी
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
विसाल-ए-यार से दूना हुआ इश्क़
मरज़ बढ़ता गया जूँ जूँ दवा की
वफ़ा परछाईं की अंधी परस्तिश
मोहब्बत नाम है महरूमियों का
सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत
IZHAR E MOHABBAT SHAYARI 2 LINES
सर दीजे राह-ए-इश्क़ में पर मुँह न मोड़िए
पत्थर की सी लकीर है ये कोह-कन की बात
हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार
इक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम है
हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते
अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते
हाँ कुछ भी तो देरीना मोहब्बत का भरम रख
दिल से न आ दुनिया को दिखाने के लिए आ
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं
हम को किस के ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किस ने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही
मोहब्बत पर शायरी
वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
‘शकील’ इस दर्जा मायूसी शुरू-ए-इश्क़ में कैसी
अभी तो और होना है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
हैं लाज़िम-ओ-मलज़ूम बहम हुस्न ओ मोहब्बत
हम होते न तालिब जो वो मतलूब न होता
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
सबब ये है कि मोहब्बत ज़माना-साज़ नहीं
हम तिरे शौक़ में यूँ ख़ुद को गँवा बैठे हैं
जैसे बच्चे किसी त्यौहार में गुम हो जाएँ
हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँ
इश्क़ आख़िर इश्क़ है तुम क्या करो हम क्या करें
वफ़ा तुम से करेंगे दुख सहेंगे नाज़ उठाएँगे
जिसे आता है दिल देना उसे हर काम आता है
Mohabbat Shayari in Hindi & Urdu SMS
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ
साँस लेने में दर्द होता है
अब हवा ज़िंदगी की रास नहीं
हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा
जो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा
शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास
सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास
हर आन एक ताज़ा शिकायत है आप से
अल्लाह मुझ को कितनी मोहब्बत है आप से
हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे
तू याद रहेगा हमें हाँ याद रहेगा
मोहब्बत की गजल
हम जानते तो इश्क़ न करते किसू के साथ
ले जाते दिल को ख़ाक में इस आरज़ू के साथ
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
‘हफ़ीज़’ अपनी बोली मोहब्बत की बोली
न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी
रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई
क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा
रात थी जब तुम्हारा शहर आया
फिर भी खिड़की तो मैं ने खौल ही ली
रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद
बे-मोहब्बत ख़ुदा नहीं मिलता
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