Amrita Pritam biography | shayari on Amrita Pritam

by HARNEET KAUR (Ishq Kalam)
Amrita Pritam biography | Amrita Pritam shayari

     Amrita Pritam shayari in Hindi

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                    पूरा नाम (Name)-   अमृता प्रीतम (Amrita Pritam)
                  जन्म (Birthday)-   31 अगस्त, 1919, गुजराँवाला, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान)
                      मृत्यु (Death)-    31 अक्टूबर, 2005, दिल्ली, भारत

 Amrita Pritam History

पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवियित्री अमृता प्रीतम जी 31 अगस्त 1919 में गुजरांवाला पंजाब, (जो कि अब पाकिस्तान में है) में जन्मीं थी। इनकी शिक्षा लाहौर से हुई। बचपन से ही उन्हें पंजाबी भाषा में कविता, कहानी और निबंध लिखने में बेहद दिलचस्पी थी, उनमें एक कवियित्री की झलक बचपन से ही ही दिखने लगी थी।

वहीं जब यह महज 11 साल की थी, तब इन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, उनके सिर से मां का साया हमेशा के लिए उठा गया, जिसके बाद उनके नन्हें कंधों पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई। इस तरह इनका बचपन जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गया।

16 साल की उम्र में प्रकाशित हुआ प्रथम संकलन:

 

अद्भुत प्रतिभा की धनी अमृता प्रीतम जी उन महान साहित्यकारों में से एक थीं, जिनका महज 16 साल की उम्र में ही पहला संकलन प्रकाशित हो गया था। 1947 में अमृता प्रीतम जी ने भारत-पाकिस्तान के बंटवारे को बेहद करीब से देखा था और इसकी पीड़ा महसूस की थी।

उन्होंने 18 वीं सदी में लिखी अपनी कविता ”आज आखां वारिस शाह नु” में भारत-पाक विभाजन के समय में अपने गुस्से को इस कविता के माध्यम से दिखाया था, साथ ही इसके दर्द को बेहद भावनात्मक तरीके से अपनी इस रचना में पिरोया था।

उनकी यह कविता काफी मशहूर भी हुई थी और इसने उन्हें साहित्य में एक अलग पहचान दिलवाई थी। आजादी मिलने के बाद भारत-पाक बंटबारे के समय इस महान कवियित्री अमृता प्रीतम जी का परिवार भारत की राजधानी दिल्ली में आकर बस गया, हालांकि भारत आने के बाद भी उनकी लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पड़ा, भारत-पाक दोनों ही देश के लोग उनकी कविताओं को उतना ही पसंद करते थे, जितना कि वे विभाजन से पहले करते थे।

भारत आने के बाद अमृता प्रीतम जी ने पंजाबी भाषा के साथ-साथ हिन्दी भाषा में लिखना शुरु कर दिया।

 

Amrita Pritam Love Story

पंजाबी साहित्य को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने वाली इस मशहूर लेखिका का विवाह महज 16 साल की उम्र में प्रीतम सिंह से हुआ था, हालांकि उनकी यह शादी काफी दिनों तक नहीं चल पाई थी। सन् 1960 में अमृता जी का अपने पति के साथ तलाक हो गया था।

वहीं अमृता प्रीतम जी की आत्म कथा रशीदी टिकट के मुताबिक प्रीतम सिंह से तलाक के बाद कवि साहिर लुधिंवी के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ गईं, लेकिन फिर जब साहिर की जिंदगी में गायिका सुधा मल्होत्रा आ गई, उस दौरान अमृता प्रीतम जी की मुलाकात आर्टिस्ट और लेखक इमरोज से हुई है, जिनके साथ उन्होंने अपना बाकी जीवन व्यतीत किया।

वहीं अमृता जी की प्रेम कहानी एवं उनके जीवन पर आधारित – Amrita Pritam Imroz Love Story
अमृता इमरोज़: ए लव स्टोरी नाम की एक किताब भी लिखी गयी है। अमृता प्रीतम के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्होंने ही लिव-इन-रिलेशनशिप की शुरुआत की थी।

 Amrita Pritam Books or Amrita Pritam Poem

 

पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ एवं लोकप्रिय कवियित्री अमृता प्रीतम जी की गिनती उन साहित्यकारों में होती है। जिनकी रचनाओं का विश्व की कई अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया है। अमृता जी ने अपनी रचनाओं में सामाजिक जीवन दर्शन का बेबाक एवं बेहद रोमांचपूर्ण वर्णन किया है।

उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर अपनी खूबसूरत लेखनी चलाई हैं। अमृता जी की रचनाओं में उनके लेखन की गंभीरता और गहराई साफ नजर आती है। विलक्षण प्रतिभा की धनी इस महान कवियित्री ने अपनी रचनाओं में तलाकशुदा महिलाओं की पीड़ा एवं शादीशुदा जीवन के कड़वे अनुभवों का व्याख्या बेहद खूबसूरती से की है।

अमृता प्रीतम जी द्धारा रचित उपन्यास ‘पिंजर’ पर साल 1950 में एक अवार्ड विनिंग फिल्म पिंजर भी बनी थी, जिसने काफी लोकप्रियता हासिल की थी। आपको बता दें कि अमृता प्रीतम जी ने अपने जीवन में करीब 100 किताबें लिखीं थी, जिनमें से इनकी कई रचनाओं का अनुवाद विश्व की कई अलग-अलग भाषाओं में किया गया था। अमृता प्रीतम जी द्धारा लिखित उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है –

उपन्यास – पिंजर, कोरे कागज़, आशू, पांच बरस लंबी सड़क उन्चास दिन, अदालत, हदत्त दा जिंदगीनामा, सागर, नागमणि, और सीपियाँ, दिल्ली की गलियां, तेरहवां सूरज, रंग का पत्ता, धरती सागर ते सीपीयां, जेबकतरे, पक्की हवेली, कच्ची सड़क।
आत्मकथा – रसीदी टिकट।
कहानी संग्रह : कहानियों के आंगन में, कहानियां जो कहानियां नहीं हैं।
संस्मरण :एक थी सारा, कच्चा आँगन।
कविता संग्रह : चुनी हुई कविताएं।

सम्मान और पुरस्कार – Amrita Pritam Awards

 

अद्धितीय एवं विलक्षण प्रतिभा वाली महान कवियित्री अमृता प्रीतम जी को उनकी अद्भुत रचनाओं के लिए कई अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आपको बता दें कि 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित यह पहली पंजाबी महिला थी।

इसके साथ ही भारत के महत्वपूर्ण पुरस्कार पद्म श्री हासिल करने वाली भी यह पहली पंजाबी महिला थी। इसके अलावा इन्हें पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्धारा पुरस्कार समेत ज्ञानपीठ आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। अमृता प्रीतम जी के दिए गए पुरस्कारों की सूची निम्नलिखित है –

साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956)
पद्मश्री (1969)
पद्म विभूषण (2004)
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)
बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (बुल्गारिया – 1988)
डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (दिल्ली युनिवर्सिटी- 1973)
डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (जबलपुर युनिवर्सिटी- 1973)
फ्रांस सरकार द्वारा सम्मान (1987)
डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (विश्व भारती शांतिनिकेतन- 1987)

 

अमृता प्रीतम जी की मृत्यु – Amrita Pritam Death

काफी लंबी बीमारी के चलते 31 अक्टूबर 2005 को 86 साल की उम्र में उनका देहांत हो गय़ा। इस तरह महान कवियित्री अमृता प्रीतम जी की कलम हमेशा के लिए रुक गई।

वहीं आज अमृता प्रीतम भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन आज भी उनके द्धारा लिखित उनके उपन्यास, कविताएं, संस्मरण, निबंध, उनकी मौजूदगी का एहसास करवाते हैं।

वहीं इस महान लेखिका के सम्मान में 31 अगस्त, 2019 को, उनकी 100वीं जयंती पर गूगल ने भी बेहद खास अंदाज में डूडल बनाया है।

Amrita Pritam shayari

 

Amrita Pritam biography | Amrita Pritam shayari

 

धरती का दिल धड़क रहा है
सुना है आज टहनियों के घर
फूल मेहमान हुए हैं
तेरा मिलना ऐसे होता है। 

 

वह देख! परे सामने उधर
सच और झूठ के बीच
कुछ ख़ाली जगह है
तड़प किसे कहते हैं,

 

जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे
अमृता प्रीतम
जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
समझना वह मेरा घर है

 

अब सूरज रोज वक़्त पर डूब जाता है
और अँधेरा रोज़ मेरी छाती में उतर आता 

 

तू यह नहीं जानती
किसी पर कोई अपनी
ज़िन्दगी क्यों निसार करता है

 

मैं उस वक़्त का फल हूँ
जब आज़ादी के पेड़ पर
बौर पड़ रहा था

 

तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज़ है

 

आँखों में कंकड़ छितरा गए
और नज़र जख़्मी हो गई
कुछ दिखाई नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है

 

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हे की तरह होते हैं
अमृता प्रीतम
सूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गई,
हमारी दोनों की तकदीरें

 

उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी

 

उसने तो इश्क की कानी खा ली थी
और एक दरवेश की मानिंद उसने
मेरे श्वाशों कि धुनी राम ली थी

 

तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है

 

चिंगारी तूने दी थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

 

जो भी बच्चा इस शहर में जनमता
पूछता कि किस बात पर यह बहस हो रही?
फिर उसका प्रश्न ही एक बहस बनता
बहस से निकलता, बहस में मिलता.

 

 

Amrita Pritam shayari

 

इससे पहले कि मेरी सोच घबराये
और गलत मोड़ पर मुड़ जाये
इससे पहले कि बादल को उतारते
यह सूरज टूट जाये.

 

मेरी माँ की कोख मज़बूर थी
मैं भी तो एक इन्सान हूँ
आज़ादियों की टक्कर में
उस चोट का निशान हूँ

 

आंखों में ककड़ छितरा गये
और नजर जख्मी हो गयी
कुछ दिखायी नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है। 

 

अब सूरज रोज वक़्त पर डूब जाता है
और अँधेरा रोज़ मेरी छाती में उतर आता है। 

 

धरती का दिल धड़क रहा है
सुना है आज टहनियों के घर
फूल मेहमान हुए हैं। 

 

उम्र के काग़ज़ पर —
तेरे इश्क़ ने अँगूठा लगाया,
हिसाब कौन चुकायेगा !
क़िस्मत ने एक नग़मा लिखा है
कहते हैं कोई आज रात
वही नग़मा गायेगा

 

जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना
वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयी। 

 

यह फिल्म मैंने देखी नहीं
सिर्फ़ सुनी है
क्योंकि सैन्सर का कहना है —
‘नॉट फॉर अडल्स।’

 

मुँह में निवालों की जगह
निवाले की बाते रह गयीं
और आसमान में काली रातें
चीलों की तरह उड़ने लगीं। 

 

तुम मिले तो कई जन्म
मेरी नब्ज़ में धड़के
तो मेरी साँसों ने तुम्हारी
साँसों का घूँट पिया। 

 

यह एक शाप है, यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
— समझना वह मेरा घर है। 

 

मर्द ने औरत के साथ अभी तक सोना ही सीखा है,
जागना नहीं।
इसीलिए मर्द और औरत का रिश्ता
उलझन का शिकार रहता है।

 

 

 ज़िन्दगी तुम्हारे उसी गुण का इम्तिहान लेती है,
जो तुम्हारे भीतर मौजूद है मेरे अन्दर इश्क़ था। 

 

 इस जन्म में कई बार लगा कि
औरत होना गुनाह है
लेकिन यही गुनाह
मैं फिर से करना चाहूँगी,
एक शर्त के साथ,
कि ख़ुदा को अगले जन्म में भी,
मेरे हाथ में क़लम देनी होगी।

 

                                                                                    

 पैर खोलो तो धरती अपनी है
पंख खोलो तो आसमान।

 

 इंसान भी एक समुद्र है
किसी को क्या मालूम कि
कितने हादसे और कितनी यादें उसमें समाई हुई होती हैं।
इसलिए मैंने उम्र की सारी कड़वाहट पीली।

 

 

उम्र के काग़ज़ पर –
तेरे इश्क़ ने अँगूठा लगाया,
हिसाब कौन चुकायेगा !

तुम मिले
तो कई जन्म मेरी नब्ज़ में धड़के
तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए।

 

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तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।

 

 इंसान अपने अकेलेपन से निजात पाने के लिए
मुहब्बत करता है,
और मुहब्बत इस बात की तस्दीक करती है कि
उसका अकेलापन अब ताउम्र कायम रहेगा।

 

 धरती का दिल धड़क रहा है
सुना है आज
टहनियों के घर फूल मेहमान हुए हैं। 

 

 जितना लिखा गया तुझे ऐ इश्क़
सोचती हूं उतना निभाया क्यू नहीं गया।

 

 मेरी नज़र में अधूरे ख़ुदा का नाम इंसान है
और पूरे‌ इंसान का‌ नाम ख़ुदा है।

जानते हो मेरे पास कुछ संदेशे हैं
जिनका इंतज़ार किसी को भी नहीं

 

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ, कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी

 

खुदा जाने
उसने कैसी तलब पी थी
बिजली की लकीर की तरह
उसने मुझे देखा
कहा
तुम किसी से रास्ता न मांगना
और किसी भी दिवार को
हाथ न लगाना
न ही घबराना
न किसी के बहलावे में आना
बादलों की भीड़ में से
तुम पवन की तरह गुजर जाना।

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Amrita Pritam biography | Amrita Pritam shayari

 प्रेम में पड़ी स्त्री को
तुम्हारे साथ सोने से ज़्यादा अच्छा लगता है
तुम्हारे साथ जागना।

 

 सपने – जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है

 

 स्त्री तो ख़ुद डूब जाने को तैयार रहती है,
समंदर अगर उसकी पसन्द का हो।

 

मुश्किल है इमरोज होना
रोज रोज क्या, एक रोज होना

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी। 

 

 जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना
वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयी। 

 

जिसके साथ होकर भी तुम अकेले रह सको,
वही साथ करने योग्य है।

 

 मैं उस प्यार के गीत लिखूँगी,
जो गमले में नहीं उगता,
जो सिर्फ धरती में उग सकता है। 

 

 कई बातें ऐसी होती हैं
जिन्हें शब्दों की सज़ा नहीं देनी चाहिए। 

 

 भारतीय मर्द अब भी औरतों को परंपरागत काम करते देखने के आदी हैं
उन्हें बुद्धिमान औरतों की संगत तो चाहिए होती है
लेकिन शादी के लिए नहीं
एक सशक्त महिला के साथ की कद्र करना अब भी उन्हें नहीं आया है। 

 

 जीवन भी बड़ा अजीब होता है।
कई बार उसकी परतों में से हम
जिस रंग को खोजते हैं,
वह नहीं निकलता पर
कोई ऐसा रंग निकल आता है
जो उससे भी ज्यादा खूबसूरत होता है।

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 तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया। 

 

 अंधेरे का कोई पार नही
मेले के शोर में भी खामोशी का आलम है
और तुम्हारी याद इस तरह जैसे धूप का एक टुकड़ा।

 ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खैर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले। 

 

मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए
सितारों की मुठियाँ भरकर
आसमान ने निछावर कर दीं। 

 

 मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है। 

 

 तड़प किसे कहते हैं
तू यह नहीं जानती
किसी पर कोई अपनी
ज़िन्दगी क्यों निसार करता है
अपने दोनों जहाँ
कोई दाँव पर लगाता है
नामुराद हँसता है
और हार जाता है। 

 

 काया की हक़ीक़त से लेकर
काया की आबरू तक मैं थी
काया के हुस्न से लेकर
काया के इश्क़ तक तू था। 

 

उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्क की महक
कुछ तेरी सांसों में
कुछ हवा में मिल गयी। 

 

 मेरी सेज हाज़िर है
पर जूते और कमीज़ की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज़ है। 

 

 चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा। 

 

 रात ऊँघ रही है
किसी ने इन्सान की
छाती में सेंध लगाई है
हर चोरी से भयानक
यह सपनों की चोरी है।

 

 कई बातें ऐसी होती हैं
जिन्हें शब्दों की सजा नहीं देनी चाहिए।

 

 स्त्रियां उतारी गई सिर्फ़ कागज़ और केनवास पर
नहीं उतारी गई तो बस रूह में

Amrita Pritam biography | Amrita Pritam shayari

 मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा। 

 

 जिससे एक मर्तबा प्रेम हो जाए
फिर जीवन भर नहीं टूटता
अतीत की स्मृतियों से वह कभी रिक्त नहीं होता
प्रेम कि मृत्यु हमारी आंशिक मृत्यु है
हर बार प्रेम के मरने पर हमारा एक हिस्सा भी हमेशा के लिए मर जाता है।

 

 जब मैं तेरा गीत लिखने लगी
कागज के ऊपर उभर आईं
केसर की लकीरें
सूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गई
हमारी दोनों की तकदीरें। 

 आँखों में कंकड़ छितरा गए
और नज़र जख़्मी हो गई
कुछ दिखाई नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है।

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 यह कैसा हुस्न और कैसा इश्क़
और तू कैसी अभिसारिका
अपने किसी महबूब की
तू आवाज़ क्यों नहीं सुनती। 

 

फिर बरसों के मोह को
एक ज़हर की तरह पीकर
उसने काँपते हाथों से
मेरा हाथ पकड़ा
चल क्षणों के सिर पर
एक छत डालें
वह देख परे सामने उधर
सच और झूठ के बीच
कुछ ख़ाली जगह है। 

 

पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
तो हर देश के हर शहर की
हर गली का द्वार खटखटाओ
यह एक शाप है यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
समझना वह मेरा घर है।

 

 कहानी लिखने वाला बड़ा नहीं होता,
बड़ा वह है जिसने कहानी अपने जिस्म पर झेली है।

 

 यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे।

 

 मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता हूं। 

 

उस मज़हब के माथे पर से
यह ख़ून कौन धोएगा
जिसके आशिक़ हर गुनाह
मज़हब के नाम से करते,
राहों पर काटें बिछाते हैं,
ज़बान से ज़हर उगलते,
जवान खून को बहाते हैं
और खून से भरे हाथ
मज़हब की ओट में छिपाते हैं। 

 

 मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था
फिर समुन्द्र को खुदा जाने क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई और
हंस कर कुछ दूर हो गया। 

 

 मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरी कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं।

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पहचान

 

तुम मिले
तो कई जन्म
मेरी नब्ज़ में धड़के
तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए–

एक गुफा हुआ करती थी
जहाँ मैं थी और एक योगी
योगी ने जब बाजुओं में लेकर
मेरी साँसों को छुआ
तब अल्लाह क़सम!
यही महक थी जो उसके होठों से आई थी–
यह कैसी माया कैसी लीला
कि शायद तुम ही कभी वह योगी थे
या वही योगी है–
जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है
और वही मैं हूँ… और वही महक है…

– अमृता प्रीतम

सिगरेट

 

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो

मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा

उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,

देखो यह आखरी टुकड़ा है
ऊँगलीयों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी ऊँगली ना छू ले

ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!

कुफ़्र

आज हमने एक दुनिया बेची
और एक दीन ख़रीद लिया
हमने कुफ़्र की बात की

सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली

आज हमने आसमान के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूँट चाँदनी पी ली

यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे

– अमृता प्रीतम

amrita shayari

शहर

 

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है
सड़कें – बेतुकी दलीलों-सी…
और गलियाँ इस तरह
जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता
कोई उधर

हर मकान एक मुट्ठी-सा भिंचा हुआ
दीवारें-किचकिचाती सी
और नालियाँ, ज्यों मुँह से झाग बहता है

यह बहस जाने सूरज से शुरू हुई थी
जो उसे देख कर यह और गरमाती
और हर द्वार के मुँह से
फिर साईकिलों और स्कूटरों के पहिये
गालियों की तरह निकलते
और घंटियाँ-हार्न एक दूसरे पर झपटते

जो भी बच्चा इस शहर में जनमता
पूछता कि किस बात पर यह बहस हो रही?
फिर उसका प्रश्न ही एक बहस बनता
बहस से निकलता, बहस में मिलता…

शंख घंटों के साँस सूखते
रात आती, फिर टपकती और चली जाती

पर नींद में भी बहस ख़तम न होती
मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है….

– अमृता प्रीतम

shayri on amrita

एक मुलाक़ात

मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने
क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई
और हंस कर कुछ दूर हो गया

हैरान थी….
पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस प्रकार की घटना
कभी सदियों में होती है…..

लाखों ख्याल आये
माथे में झिलमिलाये

पर खड़ी रह गयी कि उसको उठा कर
अब अपने शहर में कैसे जाऊंगी?

मेरे शहर की हर गली संकरी
मेरे शहर की हर छत नीची
मेरे शहर की हर दीवार चुगली

सोचा कि अगर तू कहीं मिले
तो समुन्द्र की तरह
इसे छाती पर रख कर
हम दो किनारों की तरह हंस सकते थे

और नीची छतों
और संकरी गलियों
के शहर में बस सकते थे….

पर सारी दोपहर तुझे ढूंढते बीती
और अपनी आग का मैंने
आप ही घूंट पिया

मैं अकेला किनारा
किनारे को गिरा दिया
और जब दिन ढलने को था
समुन्द्र का तूफान
समुन्द्र को लौटा दिया….

अब रात घिरने लगी तो तूं मिला है
तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ- दूर बहते समुन्द्र में तूफान है…..

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