Jaun Elia shayari | bio of john Elia

by HARNEET KAUR (Ishq Kalam)
John Elia shayari

Jaun Elia shayari

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जॉन एलिया उर्दू के महान शायर, का जन्म अमरोहा उत्तरप्रदेश भारत में हुआ था। जॉन एलिया 8 वर्ष की उम्र में अपना पहला शेर लिखा था। युवा समय में ये काफी संवेदनशील थे।  इनके अंदर अंग्रेजों के प्रति काफी क्रोध था।  जॉन को कई भाषाओ का ज्ञान था। जैसे कि हिंदी, उर्दू, पर्सियन, अंग्रेजी और हिब्रू आदि पर अच्छी पकड़ थी।  यह अब के शायरों में सबसे ज्यादा पढ़े जाने और सुने जाने वाले शायरों में शुमार हैं।  भारत-पकिस्तान के बँटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये। लेकिन वे अपने पैतृक स्थान भारत को कभी नहीं भूलें। 

 

 Jaun Elia Biography in Hindi

 

    नाम – जॉन एलिया ( Jaun Elia )
जन्मतिथि – 14 दिसंबर 1931
जन्मस्थान – अमरोहा, उत्तरप्रदेश, भारत

माता का नाम –
पिता का नाम – शफीक हसन एलिया
पत्नी का नाम – जाहिदा
बच्चे – दो पुत्रिया और एक पुत्र
पेशा – उर्दू शायर, कवि, दार्शनिक
प्रसिद्ध रचनाएँ – शायद, यानी, गुमान
मृत्युतिथि – 8 नवंबर 2002 (उम्र 70)
मृत्युस्थान – कराची, सिंध, पकिस्तान

 

जॉन एलिया की बेहतरीन रचनाएं | Jaun Elia Best Works
शायद ( Shayad ) – 1991
यानी ( Yanee ) – 2003
गुमान ( Guman ) – 2004
लेकिन ( Lekin ) – 2006
गोया ( Goya ) – 2008

 

सन् 2003 की रचना “यानी” के बाद लोग, खुद को बड़ा न समझने वाले जॉन एलिया को समझने लगे और पसंद करने लगे। जॉन एलिया जैसे शायर बहुत कम होते हैं।  उनकी बेहतरीन रचनाओं में उनकी विद्वता की अनूठी झलक मिलती हैं। 

 Jaun Elia Death

एलिया और जाहिदा के बीच 80 के दशक में तलाक हो गया जिससे जॉन एलिया काफी टूट गये और उन्होंने शराब का सहारा लिया काफी लम्बी बीमारी के बाद 8 नवंबर 2002 को पाकिस्तान में इनकी मृत्यु हो गयी। 

जॉन एलिया की कुछ बेहतरीन रचनाएँ | Joun Elia Few Best Creation

जॉन एलिया की रचनाएँ दिलों को छू लेती हैं और उनके शब्दों का  जादू दिल में उतर जाती हैं। 

 

बेदिली! क्या यूँ ही दिन गुजर जायेंगे
सिर्फ़ ज़िन्दा रहे हम तो मर जायेंगे

 

ये खराब आतियाने, खिरद बाख्ता
सुबह होते ही सब काम पर जायेंगे

 

कितने दिलकश हो तुम कितना दिलजूँ हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएंगे

 

 

उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं

 

मै उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलतें हैं

 

वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

 

क्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं

 

John Elia shayari

अपने सब यार काम कर रहे हैं
और हम हैं कि नाम कर रहे हैं। 

 

अब तो हर बात याद रहती है
ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया। 

 

अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या। 

 

इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैंने। 

 

उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं। 

 

एक ही तो हवस रही है हमें
अपनी हालत तबाह की जाए। 

 

क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं। 

 

कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया। 

 

john elia shayari in hindi

 

काम की बात मैंने की ही नहीं
ये मेरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं। 

 

कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे। 

 

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे। 

 

कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
दिल मेरी जान तेरे बस का नहीं। 

 

ख़र्च चलेगा अब मेरा किस के हिसाब में भला
सब के लिए बहुत हूँ मैं अपने लिए ज़रा नहीं। 

 

जमा हम ने किया है ग़म दिल में
इस का अब सूद खाए जाएँगे। 

 

ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को
अपने अंदाज़ से गँवाने का। 

 

ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में। 

 

जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है। 

 

‘जौन’ दुनिया की चाकरी कर के
तूने दिल की वो नौकरी क्या की। 

 

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम। 

 

नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की परवाह क्यूँ करें हम। 

हम को हरगिज़ नहीं ख़ुदा मंज़ूर
या’नी हम बे-तरह ख़ुदा के हैं। 

 

हम को यारों ने याद भी न रखा
‘जौन’ यारों के यार थे हम तो। 

 

हमारे ज़ख़्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं
कि उस गली में गए अब ज़माने हो गए हैं। 

 

हम ने क्यूँ ख़ुद पे ए’तिबार किया
सख़्त बे-ए’तिबार थे हम तो। 

 

हम यहाँ ख़ुद आए हैं लाया नहीं कोई हमें
और ख़ुदा का हम ने अपने नाम पर रक्खा है नाम। 

 

हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम। 

 

हमें शिकवा नहीं इक दूसरे से
मनाना चाहिए इस पर ख़ुशी क्या। 

 john elia shayari 

John Elia shayari

हम जो अब आदमी हैं पहले कभी
जाम होंगे छलक गए होंगे। 

 

हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ
हैं कई हिज्र दरमियाँ जानाँ। 

 

हमला है चार सू दर-ओ-दीवार-ए-शहर का
सब जंगलों को शहर के अंदर समेट लो। 

 

रखो दैर-ओ-हरम को अब मुक़फ़्फ़ल
कई पागल यहाँ से भाग निकले। 

 

याद आते हैं मोजज़े अपने
और उस के बदन का जादू भी। 

 

सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर
अब किसे रात भर जगाती है। 

 

है वो बेचारगी का हाल कि हम
हर किसी को सलाम कर रहे हैं। 

 

JAUN ELIA SAD SHAYARI

 

हैं दलीलें तिरे ख़िलाफ़ मगर
सोचता हूँ तिरी हिमायत में। 

 

वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम। 

 

याद उसे इंतिहाई करते हैं
सो हम उस की बुराई करते हैं। 

 

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे। 

 

राएगाँ वस्ल में भी वक़्त हुआ
पर हुआ ख़ूब राएगाँ जानाँ। 

 

रेहन सरशारी-फ़ज़ा के हैं
आज के बा’द हम हवा के हैं। 

 

हम अजब हैं कि उस की बाहोँ में
शिकवा-ए-नारसाई करते हैं। 

John Elia shayari

 

 

हम हैं मसरूफ़-ए-इंतिज़ाम मगर
जाने क्या इंतिज़ाम कर रहे हैं। 

 

मुझे अब तुम से डर लगने लगा है
तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या। 

 

मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से। 

 

हुस्न कहता था छेड़ने वाले
छेड़ना ही तो बस नहीं छू भी। 

 

ये बहुत ग़म की बात हो शायद
अब तो ग़म भी गँवा चुका हूँ मैं। 

 

ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम। 

 

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या। 

जॉन एलिया रेख़्ता, शायद जॉन एलिया, मैं जो हूँ जॉन एलिया हूँ जनाब, जॉन एलिया बायोग्राफी, तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेती, यूँ जो तकता है आसमान को तू कोई रहता है आसमान में क्या की बेहतरीन कविताएँ व शायरियो को आप यहाँ से जान व Facebook & Whatsapp पर शेयर भी करे :

 

ये पैहम तल्ख़-कामी सी रही क्या
मोहब्बत ज़हर खा कर आई थी क्या। 

 

मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है ख़ानदान में क्या। 

 

मुझ को ये होश ही न था तू मिरे बाज़ुओं में है
यानी तुझे अभी तलक मैं ने रिहा नहीं किया। 

 

हर शख़्स से बे-नियाज़ हो जा
फिर सब से ये कह कि मैं ख़ुदा हूँ। 

 

हो कभी तो शराब-ए-वस्ल नसीब
पिए जाऊँ मैं ख़ून ही कब तक। 

 

हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई। 

 

रोया हूँ तो अपने दोस्तों में
पर तुझ से तो हँस के ही मिला हूँ। 

 

Jaun Elia Shayari in Hindi

 

ये वार कर गया है पहलू से कौन मुझ पर
था मैं ही दाएँ बाएँ और मैं ही दरमियाँ था। 

 

मिरी शराब का शोहरा है अब ज़माने में
सो ये करम है तो किस का है अब भी आ जाओ। 

 

मुझ को आदत है रूठ जाने की
आप मुझ को मना लिया कीजे। 

 

मुझ को ख़्वाहिश ही ढूँडने की न थी
मुझ में खोया रहा ख़ुदा मेरा। 

 

मुझ से अब लोग कम ही मिलते हैं
यूँ भी मैं हट गया हूँ मंज़र से। 

 

मुझे अब होश आता जा रहा है
ख़ुदा तेरी ख़ुदाई जा रही है। 

 

यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या। 

 

JOHN ELIA BEST SHAYARI

मिल कर तपाक से न हमें कीजिए उदास
ख़ातिर न कीजिए कभी हम भी यहाँ के थे। 

 

पूछ न वस्ल का हिसाब हाल है अब बहुत ख़राब
रिश्ता-ए-जिस्म-ओ-जाँ के बीच जिस्म हराम हो गया। 

 

तो क्या सच-मुच जुदाई मुझ से कर ली
तो ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या। 

 

मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या। 

 

न रखा हम ने बेश-ओ-कम का ख़याल
शौक़ को बे-हिसाब ही लिक्खा। 

 

नई ख़्वाहिश रचाई जा रही है
तिरी फ़ुर्क़त मनाई जा रही है। 

 

सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं। 

जॉन एलिया शायरी इन हिंदी

हासिल-ए-कुन है ये जहान-ए-ख़राब
यही मुमकिन था इतनी उजलत में। 

 

शब जो हम से हुआ मुआफ़ करो
नहीं पी थी बहक गए होंगे। 

 

शीशे के इस तरफ़ से मैं सब को तक रहा हूँ
मरने की भी किसी को फ़ुर्सत नहीं है मुझ में। 

 

सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में
हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था। 

 

नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम। 

 

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम। 

 

मैं कहूँ किस तरह ये बात उस से
तुझ को जानम मुझी ख़तरा है। 

Jaun Elia  Shayari

 

मैं ले के दिल के रिश्ते घर से निकल चुका हूँ
दीवार-ओ-दर के रिश्ते दीवार-ओ-दर में होंगे। 

 

मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया। 

 

मैं सहूँ कर्ब-ए-ज़िंदगी कब तक
रहे आख़िर तिरी कमी कब तक। 

 

मरहम-ए-हिज्र था अजब इक्सीर
अब तो हर ज़ख़्म भर गया होगा। 

 

सब मेरे बग़ैर मुतमइन हैं
मैं सब के बग़ैर जी रहा हूँ। 

 

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यूँ करें हम। 

 

फिर उस गली से अपना गुज़र चाहता है दिल
अब उस गली को कौन सी बस्ती से लाऊँ मैं। 

 

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं। 

 

वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे। 

 

मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को। 

 

मेरी हर बात बे-असर ही रही
नक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या। 

 

हाए वो उस का मौज-ख़ेज़ बदन
मैं तो प्यासा रहा लब-ए-जू भी। 

 

सब से पुर-अम्न वाक़िआ ये है
आदमी आदमी को भूल गया। 

 

शाम हुई है यार आए हैं यारों के हमराह चलें
आज वहाँ क़व्वाली होगी ‘जौन’ चलो दरगाह चलें। 

gulzar shayari

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