javed Akhtar ki shayari in hindi
Javed Akhtar ki shayari | bio of Javed Akhtar |Javed Akatar ki shayari with images | biography of javed akhtar download
हिंदी सिनेमा के गीतों को अपनी कलम से जादुई अंदाज़ देने वाले जावेद अख्तर को कौन नहीं जानता। ग़जलों को एक नया और आसान रूप देने में जावेद साहब का बहुत बड़ा योगदान है। सलीम खान और जावेद अख्तर ने शोले, ज़ंजीर और न जाने कितनी कालजयी फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी है। इस जोड़ी को सिनेमा में सलीम-जावेद के नाम से भी जाना जाता है। जावेद साहब को वर्ष 1999 को पद्म भूषण और 2007 में पद्म भूषण से नवाजा जा चुका है।
जन्म
जावेद अख्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 को ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता जान निसार अखतर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि और माता सफिया अखतर मशहूर उर्दु लेखिका तथा शिक्षिका थीं। उनकी माँ का इंतकाल तब हो गया था जब वे बेहद ही छोटे थे। वालिद ने दूसरी शादी कर ली और कुछ दिन भोपाल में अपनी सौतेली माँ के घर रहने के बाद भोपाल शहर में उनका जीवन दोस्तों के भरोसे हो गया। यहीं कॉलेज की पढाई पूरी की और जिन्दगी के नए सबक भी सीखे।पढाई
माँ के इंतकाल के बाद वह कुछ दिन अपने नाना-नानी के पास लखनऊ में रहे उसके बाद उन्हें अलीगढ अपने खाला के घर भेज दिया गया। जहाँ के स्कूल में उनकी शुरूआती पढाई हुई। उसके बाद वह वापस भोपाल आ गये, यहाँ आकर उन्होंने अपनी पढाई को पूरा किया।शादी
जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी थीं। जिनसे उन्हें दो बच्चे है फरहान अख्तर और जोया अख्तर उनके दोनों ही बच्चे हिंदी सिनेमा के जाने माने अभिनेता, निर्देशक-निर्माता हैं। उनकी दूसरी पत्नी हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री शबाना आजमी हैं।
Bio of javed Akhtar
करियर
जावेद अख्तर ने अपने करियर की शुरुआत सरहदी लूटेरा की थी। इस फिल्म में सलीम खान ने छोटी सी भूमिका भी अदा की थी। इसके बाद सलीम-जावेद की जोड़ी ने मिलकर हिंदी सिनेमा के लिए कई सुपर-हिट फिल्मो की पटकथाएं लिखी। इन दोनों की जोड़ी को उस दौर में सलीम जावेद की जोड़ी से जाना जाता था। इन दोनों की जोड़ी ने वर्ष 1971-1982 तक करीबन 24 फिल्मों में साथ किया जिनमे सीता और गीता, शोले, हठी मेरा साथी, यादों की बारात, दीवार जैसी फिल्मे शामिल हैं। उनकी 24 फिल्मों में से करीबन 20 फ़िल्में बॉक्स-ऑफिस पर ब्लाक-बस्टर हिट साबित हुई थी।1987 में प्रदर्शित फिल्म मिस्टर इंडिया के बाद सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गई। इसके बाद भी जावेद अख्तर ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा। जावेद अख्तर को मिले सम्मानों को देखा जाए तो उन्हें उनके गीतों के लिए आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 1999 में साहित्य के जगत में जावेद अख्तर के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें पदमश्री से नवाजा गया। 2007 में जावेद अख्तर को पदम भूषण सम्मान से नवाजा गया।
Bio & shayari of javed Akhtar
जावेद अख्तर से जुडी कुछ दिलचस्प बातें
1-जावेद अख्तर का असली नाम जादू है। उनके पिता की कविता थी, ‘लम्हा-लम्हा किसी जादू का फसाना होगा’ से उनका यह नाम पड़ा था। जावेद नाम जादू से मिलता-जुलता, इसलिए उनका नाम जावेद अख्तर कर दिया।
2-जावेद अख्तर 4 अक्टूबर 1964 को मुंबई आए थे। उस वक्त उनके पास न खाने तक के पैसे नहीं थे. उन्होंने कई रातें सड़कों पर खुले आसमान के नीचे सोकर बिताईं। बाद में कमाल अमरोही के स्टूडियो में उन्हें ठिकाना मिला।
3-सलीम खान के साथ जावेद अख्तर की पहली मुलाकात ‘सरहदी लुटेरा’ फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थीं। इस फिल्म में सलीम खान हीरो थे और जावेद क्लैपर बॉय। बाद में इन दोनों ने मिलकर बॉलीवुड को कई सुपरहिट फिल्में दीं।
4- सलीम खान और जावेद अख्तर को सलीम-जावेद बनाने का श्रेय डायरेक्टर एसएम सागर को जाता है। एक बार उन्हें राइटर नहीं मिला था और उन्होंने पहली बार इन दोनों को मौका दिया।
5-सलीम खान स्टोरी आइडिया देते थे और जावेद अख्तर डायलॉग लिखने में मदद करते थे। जावेद अख्तर उर्दू में ही स्क्रिप्ट लिखते थे, जिसका बाद में हिंदी ट्रांसलेशन किया जाता है।
6- 70 के दशक में स्क्रिप्ट राइटर्स का नाम फिल्मों के पोस्टर पर नहीं दिया जाता था, लेकिन सलीम-जावेद ने बॉलीवुड में उन बुलंदियों को छू लिया था कि उन्हें कोई न नहीं कह सका और फिर तो पोस्टरों पर राइटर्स का भी नाम लिखा जाने लगा।
biography of javed akhtar download
7-सलीम-जावेद की जोड़ी 1982 में टूट गई थी. इन दोनों ने कुल 24 फिल्में एक साथ लिखीं, जिनमें से 20 हिट रहीं। जावेद अख्तर को 14 बार फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला।इनमें सात बार उन्हें बेस्ट स्क्रिप्ट के लिए और सात बार बेस्ट लिरिक्स के लिए अवॉर्ड से नवाजा गया।जावेद अख्तर को 5 बार नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है।
8- जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी थीं, जिनके साथ उनकी पहली मुलाकात ‘सीता और गीता’ के सेट पर हुई थी।हनी और जावेद का जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है।
9-जावेद अख्तर नास्तिक हैं। उन्होंने अपने बच्चों- जोया और फरहान को भी परवरिश ऐसे की है।
10-जावेद अख्तर शुरुआती दिनों में कैफी आजमी के सहायक थे। बाद में उन्हीं की बेटी शबाना आजमी के साथ उन्होंने दूसरी शादी की।
javed akhtar shayari
ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी
वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था
अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए
अक़्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाज़ार में
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए
तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया
तू ने ढाला है और ढले हैं हम
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
तुम फ़ुज़ूल बातों का दिल पे बोझ मत लेना
हम तो ख़ैर कर लेंगे ज़िंदगी बसर तन्हा
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा
वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा
हमारे दिल में अब तल्ख़ी नहीं है
मगर वो बात पहले सी नहीं है
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जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता!
मुझे पामाल रास्तों का सफर अच्छा नहीं लगता !!
– जावेद अख़्तर
अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी
हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का
– जावेद अख़्तर
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की,
आज फिर दिल को हमने समझाया….
– जावेद अख़्तर
ये ज़िन्दगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का
– जावेद अख़्तर
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से,
लेकिन एक सफर पर ऐ दिल अब जाना होगा !
– जावेद अख़्तर
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से,
लेकिन एक सफर पर ऐ दिल अब जाना होगा !
– जावेद अख़्तर
है पाश-पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है
वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का
– जावेद अख़्तर
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
– जावेद अख़्तर
“कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी”
– जावेद अख़्तर
डर हम को भी लगता है रास्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा”
– जावेद अख़्तर
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“ऊंची इमारतों से मकां मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए”
– जावेद अख़्तर
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
– जावेद अख़्तर
जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं
कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है
– जावेद अख़्तर
ग़लत बातों को खामोशी से सुन्ना हामी भर लेना ,
बहुत है फायदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता !
– जावेद अख़्तर
दर्द के फूल भी खिलते है
बिखर जाते है जख्म कैसे भी हो
कुछ रोज़ में भर जाते है .
– जावेद अख़्तर
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
– जावेद अख़्तर
मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन
मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है.
– जावेद अख़्तर
इस शहर में जी ने के अंदाज निराले है ,
होंठो पे लतीफे है आवाज़ में चाले है !
– जावेद अख़्तर
न जलने पाते थे जिसके चूल्हे भी हर सवेरे
सुना है कल रात से वो बस्ती भी जल रही है.
– जावेद अख़्तर
अजीब आदमी था वो
मोहब्बतों का गीत था !
– जावेद अख़्तर
shayri javed akhtar
वो मुफ़लिसों से कहता था ,
की दिन बदल भी सकते हैं !
– जावेद अख़्तर
तुम अपने कस्बों में जाके देखो वहां भी अब शहर ही बसे हैं
कि ढूंढते हो जो जिंदगी तुम वो जिंदगी अब कहीं नहीं है
– जावेद अख़्तर
अपनी वजहें-बर्बादी सुनिये तो मजे की
है जिंदगी से यूं खेले जैसे दूसरे की है
– जावेद अख़्तर
“इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं”
– जावेद अख़्तर
“इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में
शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है”
– जावेद अख़्तर
“है पाश पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है
वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का”
– जावेद अख़्तर
जब आईना तो देखो इक अजनबी देखो
कहां पे लाई है तुमको ये ज़िंदगी देखो
– जावेद अख़्तर
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
– जावेद अख़्तर
मैं जानता हूँ की ख़ामशी में ही मस्लहत है
मगर यही मस्लहत मिरे दिल को खल रही है
– जावेद अख़्तर
कभी तो इंसान ज़िंदगी की करेगा इज़्ज़त
ये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है
– जावेद अख़्तर
एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं
एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं
– जावेद अख़्तर
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
– जावेद अख़्तर
shayri of javed akhtar
कोई शिकवा न ग़म न कोई याद
बैठे बैठे बस आँख भर आई
– जावेद अख़्तर
किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसैली बात लिखूं
शेर की मैं तहज़ीब निभाऊं या अपने हालात लिखूं
– जावेद अख़्तर
अगर दुसरो के जोर पर उड़कर दिखाओगे
तो अपने पैरो से उड़ने की हुनर भूल जाओगे
– जावेद अख़्तर
एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है
एक वो घर जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं
– जावेद अख़्तर
ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के
वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है
– जावेद अख़्तर
सँवरना ही है तो किसी की नजरों में संवरिये,
आईने में खुद का मिजाज नहीं पूछा करते
– जावेद अख़्तर
आप भी आए, हम को भी बुलाते रहिए
दोस्ती ज़ुर्म नहीं, दोस्त बनाते रहिए
– जावेद अख़्तर
“मैं भूल जाऊं अब यही मुनासिब है,मगर भुलाना भी चाहूं तोह किस तरह भुलाऊँ,
की तुम तोह फिर भी हकीकत हो, कोई ख्वाब नहीं.”
– जावेद अख़्तर
जो भी मैंने काम किया है वो मेने दिल के करीब से ही किया है।
जो काम मेरे दिल के करीब नहीं था, उसको मैंने कभी किया ही नहीं
– जावेद अख़्तर
हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
– जावेद अख़्तर
थीं सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे
– जावेद अख़्तर
बहुत आसान है पहचान इसकी
अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है
– जावेद अख़्तर
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इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे
– जावेद अख़्तर
सँवरना ही है तो किसी की नजरों में संवरिये,
आईने में खुद का मिजाज नहीं पूछा करते
– जावेद अख़्तर
ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी
वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है– जावेद अख़्तर
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराएंगे ऐसी कहानी दे गया
– जावेद अख़्तर
ज़हनो-दिल आज भूखे मरते हैं
उन दिनों हमने फ़ाक़े झेले थे
– जावेद अख़्तर
जब आईना तो देखो इक अजनबी देखो
कहां पे लाई है तुमको ये ज़िंदगी देखो
– जावेद अख़्तर
उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
– जावेद अख़्तर
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
– जावेद अख़्तर
सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
– जावेद अख़्तर
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
– जावेद अख़्तर
हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है…
हम हैं मुसाफ़िर ऐसे जो मंज़िल से आए हैं…
– जावेद अख़्तर
“याद उसे भी एक अधूरा अफ़साना तोह होगा,
कल रास्ते में उसने हमको पेहचाना तोह होगा.”
– जावेद अख़्तर
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एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया,
एक वह दिन जब पेड़ की शाखें बोझ हमरा सहती थी
– जावेद अख़्तर
ज़हन की शाख़ों पर अशआर आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है,
– जावेद अख़्तर
हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है…
हम हैं मुसाफ़िर ऐसे जो मंज़िल से आए हैं…
– जावेद अख़्तर
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
– जावेद अख़्तर
ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब
– जावेद अख़्तर
हर खुशी में कोई कमी-सी है
हंसती आंखों में भी नमी-सी है
– जावेद अख़्तर
उस से मैं कुछ पा सकू ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी शायद बराए मेहरबानी दे गया
– जावेद अख़्तर
भूलके सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ सबको होगा याद सब.
– जावेद अख़्तर
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था
अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए.
– जावेद अख़्तर
चाँद यादों के दिये थोड़ी तमन्ना कुछ ख्वाब ,
ज़िन्दगी तुझ से ज़्यादा नहीं माँगा हम नैय…
– जावेद अख़्तर
सब को दावा-ए-वफ़ा सबको यक़ीं
इस अदकारी में हैं उस्ताद सब
– जावेद अख़्तर
दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
– जावेद अख़्तर
चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब
– जावेद अख़्तर
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शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब
– जावेद अख़्तर
मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
– जावेद अख़्तर
एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
– जावेद अख़्तर
इस शहर में जीने के अंदाज निराले हैं
होठों पे लतीफे हैं और आवाज में छाले हैं
– जावेद अख़्तर
जो मुंतजिर न मिला वो तो हम हैं
शर्मिंदा कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
– जावेद अख़्तर
पहले भी कुछ लोगों ने जौ बो कर गेहूँ चाहा था
हम भी इस उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है .
– जावेद अख़्तर
पहले भी कुछ लोगों ने जौ बो कर गेहूँ चाहा था
हम भी इस उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है .
– जावेद अख़्तर
गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदरा
हुआ जाती रही वो लम्स की नर्मी, बुरा हुआ
– जावेद अख़्तर
“तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूं फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो0
– जावेद अख़्तर”
“उस की आंखों में भी काजल फैल रहा है
मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूं”
– जावेद अख़्तर
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब ‘आओ खेलें’ सारी गलियाँ कहती थीं
– जावेद अख़्तर
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जब जब दर्द का बादल छाया,
जब गम का साया लहराया
जब आँसू पलकों तक आया,
जब ये तनहा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया,
दिल आखिर तू क्यों रोता है..
दुनिया में युही होता है..
ये जो गहरे सन्नाटे हैं..
वक्त ने सब को ही बांटे हैं
थोडा गम है सबका किस्सा..
थोड़ी धुप है सब का हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम है,
हर पल एक नया मौसम है
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है..
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है..
“इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूं गिला फिर हमें हवा से रहे”
“हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे”
– जावेद अख़्तर
एहसान करो तो दुआओं में मेरी मौत मांगना,
अब जी भर गया है जिंदगी से !
एक छोटे से सवाल पर इतनी ख़ामोशी क्यों…
बस इतना ही तो पूछा था-
‘कभी वफा की किसी से’ …
– जावेद अख़्तर
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँकमबख़्त !
भुला न पाया ये वो सिलसिला जो था ही नहीं वो इक ख़याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं वो एक बात जो मैं कह नहीं
सका तुमसे वो एक रब्त जो हममें कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं
– जावेद अख़्तर
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जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराएंगे ऐसी कहानी दे गया
उस से मैं कुछ पा सकू ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी शायद बराए मेहरबानी दे गया
खैर मैं प्यासा रहा पर उसने इतना तो किया
मेरी पलकों की कितरों को वो पानी दे गया
– जावेद अख़्तर
आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए
दोस्ती ज़ुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्त ने लूट लीं लोगों की तमन्नाएँ भी,
ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।
– जावेद अख़्तर
क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए
इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए
ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं
क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए
पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया
पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए
– जावेद अख़्तर
खो गयी है मंजिले, मिट गए है सारे रस्ते,
सिर्फ गर्दिशे ही गर्दिशे, अब है मेरे वास्ते..
काश उसे चाहने का अरमान न होता,
मैं होश में रहते हुए अनजान न होता
– जावेद अख़्तर
दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन
कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन
– जावेद अख़्तर
shayri of javed akhatar
तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
– जावेद अख़्तर
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है
हँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है
कह गए हम ये किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी-सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी-सी है
– जावेद अख़्तर
आज मैंने अपना फिर सौदा किया
और फिर मैं दूर से देखा किया
ज़िन्दगी भर मेरे काम आए असूल
एक एक करके मैं उन्हें बेचा किया
कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी
तुम से क्या कहते कि तुमने क्या किया
हो गई थी दिल को कुछ उम्मीद सी
खैर तुमने जो किया अच्छा किया
– जावेद अख़्तर
यही हालात इब्तदा से रहे लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे
इन चिराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे
उसके बंदों को देखकर कहिये हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
ज़िन्दगी की शराब माँगते हो हमको देखो कि पी के प्यासे रहे
– जावेद अख़्तर