dard bhari shayari | gum shayari

by HARNEET KAUR (Ishq Kalam)
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 मुझे चाहत नहीं है कि तू मुझे याद करें
बस तेरी यादों में मैं रहूं ये मेरी चाहत है।

 

अगर हमको मरना ही होता तो फिर मर गए होते हम
इश्क करना था जालिम और रोना था कयामत तक।

 

इश्क तेरी फितरत में आया था मेरे जाने जहां
चेहरे पर मरता तो उसे हसीना होती निगाहों में।

 

तू जाना और रख ले पास नजरिया अपना
मोहब्बत दूसरों की शर्तों पर पैदा नहीं होती।

 

सुनाना र कभी मिले तो कुछ ना बोलना
मेरी खाना सीकर में लगी है बहती हवा अब भी।

 

तेरे बनाए हुए चेहरे पर सोचा कि यह जलता मोड़ कर दो
कमबख्त हवा भी बेवफा है तेरा चेहरा बना दिया उसने।

 

घर आए ना होता तो तोड़ देता मैं
इसको तेरा चेहरा मेरी नजरों में नजर आता है।

 

जमाने भर में जाहिर हुई कोई सामान तो नहीं
इश्क है मेरा किसी शहंशाह का फरमान नहीं।

 

बाघ मरने के लिए मुझे यकीन नहीं होता
तो घर झूठ बोलता तो कुछ ऐसा बोलता।

 

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लिख तो देता तेरे झूठे चेहरे पे हज़ार कलाम पर।
मेरे दिल की कलम में आज तक उधारी बहुत है खुद्दारी बहुत है।

 

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खुश ही रहना होता तो तुमसे दूर होता में
मुझे इश्क तुझ से हुआ है मेरी खुशी से नहीं।

 

लौटकर फिर वह इश्क के जमाने नहीं आते
यह गुलशन तो आ जाते हैं विराने नहीं आते
समझ लेती है शम्मा उनको भूला भूला सा अफसाना
जो जल जाते हैं फिर वह याद पर परवाने नहीं आते।

 

 

बस यह सोच कर कि मुझे कोई तेरा ना करेगा अब
मैंने खुद ब खुद अपने चेहरे पे कालिख लगाई है।

 


कोई कहानी मुकम्मल नहीं होगी तेरे बिना।
मेरी जिंदगी की तुम अहम वर्णमाला सी हो।

 

जो मेरा है वह मुझे मिलेगा मेरे आका
मेरी किस्मत जो नहीं है वोअदा कर दे।

 

मैं तो अपनी ही नजरों में गिर सा गया हूं
यह अच्छा है कि तुम्हारे घर में आईना नहीं है।

 

ना होती रुसवाई तो दूर निकल जाते हम
ये भी अच्छा है कि ठोकर लगी है हम को
छोड़ा है तूने दामन तो इसमें खता क्या है
क्या खास था जो जमाना चाहता हमको।

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 दिल टूटा भी है तो इसमें खता किसी की नहीं
ना गवार हम गुजरे हैं दिल खिलौने सा है अपना।

 

माना की मौत से बदतर है इंतजार
अपनी तमाम उम्र गुजरी है इंतजार में।

 

जो मेरे दिल में है आतिश की तरह
वह तेरे दिल में हो जरूरी तो नहीं
यह इश्क तो बस हमारा ही है
उसकी तरफ से भी हूं जरूरी तो नहीं।

 

चलो जाओ हमें मालूम है
यह भरम भी जी का जंजाल है यह मोहब्बत भी
अफसोस होगा तुम्हें अगर घर बैठे
किसी बेवफा से तुम मुकम्मल भी।

 

इश्क में ना पूछो मुझसे कैसा मेरा हाल रहा
मुसाफिर हूं मैं और वह मालामाल रहा
कहता था कि मर जाऊंगा तुझसे बिछड़ कर
बाद मरने के मेरे वह जिंदा हजार साल रहा।

 

वह जो इश्क का दरिया देने वाला था
पाला था नासूर बन के बह रहा है अब रफ्ता रफ्ता।

 

आजा कि देख लूं तुझे जी भर के एक बार
हम होते चले हैं मौत का सामान तेरे बगैर

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जी भर के मांग लो तुम मेरी मौत की दुआ
निकलेगी ना मेरी जान तेरी जान के बगैर।

 

सफर इसका भी कुछ अलग ही होगा रहे जिंदगी में
उसकी नजरों का मिलना ही कयामत से गुजरा है मुझ पर।

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अरे इसने तो उम्रभर का दर्द दर्द दे दिया
तुम तो कहते थे इश्क मीठा होता है बहुत।

 

 मैंने सोचा था वो हाथो में हाथ देगा
वह निकला हवा सा अब क्या साथ देगा
मैं कुच कर रहा था उसके शहर से दूर
मुझे वहम था वह पीछे से आवाज देगा।

 

बाद इश्क के मुझे ठोकर लगाई है तुमने
तुम तो कहते थे कि इबादत करोगे मेरी ।

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ना वेदों की तलब है कोई ना कोई दवा मांगी है
मर रहा हूं बस तेरे आंचल की हवा मांगी है।

 

क्यों कर सिर्फ मैं ही गुनाहगार हुआ
हुआ हूं मैं ही क्यों नफरत का शिकार हुआ हूं
मैं उससे बेपनाह इश्क में कसूरवार हूं
दिया हूं और बाती का खतावार हुआ हूं।

 

सुना है खुदा देता है एक नाजुक सा दिल सबको
घर नाजुक है दिल सबके तो फिर पिघलते क्यों नहीं
जो कर देते हैं अलग जिंदगी को खुशियों से
यह रस्मो ओ रिवाज जमाने के बदलते क्यों नहीं।

 

लुक्का चुप्पी की विरासत इतनी लंबी ना करना इश्क में
और ना निकल जाए किसी की तुम्हारा आशिक ढूंढते हुए।

 

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